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|ptext=[[https://www.translatum.gr/images/pape/pape-01-1297.png Seite 1297]] att. κάω, obwohl in den mss. häufiger [[καίω]] steht, fut. καύσω, aor. ἔκαυσα, ep. [[ἔκηα]], [[κῆεν]], Il. 21, 349, conj. [[κήομεν]], 7, 377. 396, opt. κήαι, κήαιεν, 21, 336. 24, 38, inf. [[κῆαι]], Od. 15, 97, im med. κήαντο, Il. 9, 88, κηάμενοι, 9, 234 (in der Od. steht bei Wolf [[κείαντες]], 9, 231. 13, 26, imper. κεῖον, 21, 176, med. [[κειάμενος]], 16, 2. 23, 54, wo Bekker κήαντες, κῆον, κηάμενος schreibt), auch att. κέας, Aesch. Ag. 849, κέαντες, Soph. El. 747, Herm. emend. für κείας, wie ἐκκέας Ar. Pax 1099 u. Eur. Rhes. 97, perf. κέκαυκα, Xen. Hell. 6, 5, 37 u. Alexis Ath. IX, 383 c, aor. pass. ἐκαύθην, Hom. ἐκάην; [[brennen]], anbrennen,<b class="b2"> anzünden</b>, πυρὰ πολλά Il. 9, 76, öfter; aor. I. med. für sich anbrennen, a. a. O.; gew. [[verbrennen]], δένδρεα 21, 337, νεκρούς 21, 343; μηρί' ἔκαιον, beim Opfer, Od. 9, 553, wie καίουσ' ὀστέα λευκὰ θυηέντων ἐπὶ βωμῶν Hes. Th. 557; pass. verbrannt werden, brennen, πυραὶ νεκύων καίοντο θαμειαί Il. 1, 52, φλὸξ θεείου καιομένοιο 8, 135, wie [[σέλας]] καιομένοιο [[πυρός]] 19, 376; πυρὶ καιόμενος Pind. P. 3, 102, wie πυρὶ καυθεῖσα N. 10, 35; ἱερῶν καυθέντων κατὰ νόμον Plat. Legg. VII, 800 b; σβεννύναι τὸ καιόμενον πῦρ Her. 1, 86; ἐν ἀγορᾷ τοῖς θεοῖς δὰς καίεται Ar. Vesp. 1372; καομένων τῶν λαμπάδων Thesm. 280; von einem Gießbache, κεκαυμένος ἡλίῳ, ausgetrocknet, Antiphil. 31 (IX, 277). Uebertr., von der Kälte, wegen der ähnlichen Empfindung, die sie verursacht, ἡ χιὼν καίει τῶν κυνῶν τὰς ῥῖνας, er macht, daß die Nasen erfrieren, Xen. Cyn. 8, 2; Arist. Meteorl. 4, 5 [[ἐνίοτε]] γὰρ καὶ κάειν λέγεται καὶ θερμαίνειν τὸ ψυχρόν, οὐχ ὡς τὸ θερμόν, ἀλλὰ τῷ συνάγειν καὶ ἀντιπεριιστάναι τὸ θερμόν. Von Fieberhitze, Hippocr. – Sehr gew. ist die Vrbdg τέμνειν καὶ καίειν, als die beiden Hauptthätigkeiten der alten Aerzte, die sie bei Verwundungen anwandten; auch übertr. gebraucht, Plat. Gorg. 480 c 521 a Polit. 293 b; κέαντες ἢ τεμόντες πειρασόμεσθα πῆμ' ἀποτρέψαι νόσου Aesch. Ag. 823; οἱἰατροὶ τέμνουσι καὶ καίουσιν ἐπ' ἀγαθῷ Xen. An. 5, 8, 18; Mem. 1, 2, 54; Sp. – Uebertr. von Leidenschaften, wie Zorn, κάομαι τὴν καρδίαν Ar. Lys. 9; bes. von Liebe, ἐν φρεσὶ καιομέναν Pind. P. 4, 219; [[πόθος]] ἔκαυσέ με ἑταίρης Ep. ad. 11 (XII, 90); καίεσθαί τινος, von Liebe zu Einem entflammt sein, Hermesian. bei Ath. XIII, 598 a.
|ptext=[[https://www.translatum.gr/images/pape/pape-01-1297.png Seite 1297]] att. κάω, obwohl in den mss. häufiger [[καίω]] steht, fut. καύσω, aor. ἔκαυσα, ep. [[ἔκηα]], [[κῆεν]], Il. 21, 349, conj. [[κήομεν]], 7, 377. 396, opt. κήαι, κήαιεν, 21, 336. 24, 38, inf. [[κῆαι]], Od. 15, 97, im med. κήαντο, Il. 9, 88, κηάμενοι, 9, 234 (in der Od. steht bei Wolf [[κείαντες]], 9, 231. 13, 26, imper. κεῖον, 21, 176, med. [[κειάμενος]], 16, 2. 23, 54, wo Bekker κήαντες, κῆον, κηάμενος schreibt), auch att. κέας, Aesch. Ag. 849, κέαντες, Soph. El. 747, Herm. emend. für κείας, wie ἐκκέας Ar. Pax 1099 u. Eur. Rhes. 97, perf. κέκαυκα, Xen. Hell. 6, 5, 37 u. Alexis Ath. IX, 383 c, aor. pass. ἐκαύθην, Hom. ἐκάην; [[brennen]], anbrennen,<b class="b2"> anzünden</b>, πυρὰ πολλά Il. 9, 76, öfter; aor. I. med. für sich anbrennen, a. a. O.; gew. [[verbrennen]], δένδρεα 21, 337, νεκρούς 21, 343; μηρί' ἔκαιον, beim Opfer, Od. 9, 553, wie καίουσ' ὀστέα λευκὰ θυηέντων ἐπὶ βωμῶν Hes. Th. 557; pass. verbrannt werden, brennen, πυραὶ νεκύων καίοντο θαμειαί Il. 1, 52, φλὸξ θεείου καιομένοιο 8, 135, wie [[σέλας]] καιομένοιο [[πυρός]] 19, 376; πυρὶ καιόμενος Pind. P. 3, 102, wie πυρὶ καυθεῖσα N. 10, 35; ἱερῶν καυθέντων κατὰ νόμον Plat. Legg. VII, 800 b; σβεννύναι τὸ καιόμενον πῦρ Her. 1, 86; ἐν ἀγορᾷ τοῖς θεοῖς δὰς καίεται Ar. Vesp. 1372; καομένων τῶν λαμπάδων Thesm. 280; von einem Gießbache, κεκαυμένος ἡλίῳ, ausgetrocknet, Antiphil. 31 (IX, 277). Übertr., von der Kälte, wegen der ähnlichen Empfindung, die sie verursacht, ἡ χιὼν καίει τῶν κυνῶν τὰς ῥῖνας, er macht, daß die Nasen erfrieren, Xen. Cyn. 8, 2; Arist. Meteorl. 4, 5 [[ἐνίοτε]] γὰρ καὶ κάειν λέγεται καὶ θερμαίνειν τὸ ψυχρόν, οὐχ ὡς τὸ θερμόν, ἀλλὰ τῷ συνάγειν καὶ ἀντιπεριιστάναι τὸ θερμόν. Von Fieberhitze, Hippocr. – Sehr gew. ist die Vrbdg τέμνειν καὶ καίειν, als die beiden Hauptthätigkeiten der alten Aerzte, die sie bei Verwundungen anwandten; auch übertr. gebraucht, Plat. Gorg. 480 c 521 a Polit. 293 b; κέαντες ἢ τεμόντες πειρασόμεσθα πῆμ' ἀποτρέψαι νόσου Aesch. Ag. 823; οἱἰατροὶ τέμνουσι καὶ καίουσιν ἐπ' ἀγαθῷ Xen. An. 5, 8, 18; Mem. 1, 2, 54; Sp. – Übertr. von Leidenschaften, wie Zorn, κάομαι τὴν καρδίαν Ar. Lys. 9; bes. von Liebe, ἐν φρεσὶ καιομέναν Pind. P. 4, 219; [[πόθος]] ἔκαυσέ με ἑταίρης Ep. ad. 11 (XII, 90); καίεσθαί τινος, von Liebe zu Einem entflammt sein, Hermesian. bei Ath. XIII, 598 a.
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