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|ptext=[[https://www.translatum.gr/images/pape/pape-01-0736.png Seite 736]] und ἐς, letzteres ion., dor. u. altattisch, z. B. bei Thuc. vorherrschend; bei den Dichtern vermischt gebraucht; in den Tragg. u. Com. herrscht εἰς; in gewissen Vrbdgn, wie ἐς κόρακας, ἐς μακαρίαν, kommt εἰς nie vor; im Xen. schwankt die Lesart oft, vgl. Krüger zu An. 5, 3, 1; altdorisch u. böotisch ἐν, Greg. Cor. 355; auch ἴς in böotischen Inschriften; die alte Grundform ἐνς erwähnt Eust. Il. p. 722, 60 als argivisch u. kretisch, vgl. Koen zu Greg. C. a. a. O. – Präposition mit dem acc. Die allg. Bedeutung ist die Bewegung nach Etwas hinein. – 1) am häufigsten von Ländern bei den Verbis, die eine Bewegung ausdrücken, von Hom. an überall. Nach griechischer Weise steht oft der Name der Einwohner für das Land, εἰς τοὺς Καρδούχους ἐμβάλλειν Xen. An. 3, 6, 16; ἄγειν εἰς τοὺς βαρβάρους 1, 3, 5, wo Krüger zu vgl.; εἰς Πέρσας πορεύεσθαι Cyr. 8, 5, 20; πέμπειν εἰς τοὺς Βοιωτούς Thuc. 5, 32. – Damit ist zu vgl. die bei den Rednern häufige Vrbdg ἰόντες εἰς ὑμᾶς, Antipho 5, 80; Lycurg. 11; γραφεὶς τὸν ἀγῶνα τοῦτον εἰς ὑμᾶς εἰσῆλθον Dem. 18, 103; vgl. 28, 17; εἰς τὸν δῆμον παρελθεῖν Thuc. 5, 45; εἴ τις εἰσίοι γραφὴν εἰς [[δικαστήριον]] Aesch. 3, 191; überall an die Volks- oder Richterversammlung als den Ort zu denken, in den man eintritt. So auch εἰς θεὸν [[ἐλθεῖν]], zum Orakel, Pind. Ol. 7, 31; vgl. εἰς ἀνθρώπους ἐξιέναι Xen. Mem. 1, 1, 4; ἀφικόμην ἐχθροὺς εἰς ἄνδρας Eur. Phoen. 361; κατέφυγον εἰς αὐτούς Thuc. 4, 113. – Bei einzelnen Personen setzen εἰς von Hom. an nur Dichter; σπεύδομαι εἰς Ἀχιλῆα Il. 15, 402; εἰς Ἀγαμέμνονα [[δῖον]] ἄγον 23, 36; ἐλθὼν ἐς δέσποιναν Od. 14, 127; wo immer auch noch an den Ort, das Zelt od. Haus gedacht werden kann, vgl. Spitzner exc. zu Il. XXXV, εἰς Ἐπιμηθέα [[πέμπε]] Hes. O. 84; ἐς [[βασιλέα]] Thuc. 1, 137, wie Ael. V. H. 2, 1, steht einzeln; vgl. Ath. VIII, 337 c. – In den häufigen Vrbdgn εἰς Ἀΐδαο u. Ἅιδου fehlt οἶκον oder ein ähnliches Substantivum; ἷξεν εἰς Πριάμοιο Il. 24, 160; τά γ' ἐς Ἀλκινόοιο φέρον Od. 8, 418; ἀνδρὸς ἐς ἀφνειοῦ, in das Haus eines begüterten Mannes, Il. 24, 482; ἐς πατρὸς ἀπονέεσθαι Od. 2, 195. So heißt εἰς διδασκάλων πέμπειν, ἐς διδασκάλου φοιτᾶν in die Schule schicken, gehen, Plat. Prot. 325 d Lach. 201 a; ἐς Αγαθῶνος Conv. 174 a; so auch φέρων ἐς [[σεωυτοῦ]], in dein Haus, Her. 1, 108. 9, 108; vgl. 1, 119; ἐπειδὰν εἰσέλθω [[οἴκαδε]] ἐς ἐμαυτοῦ Plat. Hipp. mai. 304 d, wie [[οἴκαδε]] εἰς ἑαυτῶν Ar. Lys. 1070; auch bei Tempeln heißt es εἰς Ἀθηναίης, in den Tempel der Athene, Il. 6, 379; εἰς Αμφιάρεω ἀνέθηκε Her. 1, 192; ἐς Γαιαόχου Xen. Hell. 6, 5, 30; Ar. Plut. 411; Hom. sagt sogar ἂψ δ' εἰς Αἰγύπτοιο – στῆσα [[νέας]], Od. 4, 581, in des Aegyptus Strom. Oft wird es wie bei uns übertr., ἐς νόσον, εἰς [[ὕπνον]] πεσεῖν, εἰς κακόν, Aesch. Prom. 471 Soph. Phil. 815 Ant. 240; εἰς θυμὸν βαλεῖν, O. R. 975; über die Vrbdgn ἐς χεῖρας, λόγους [[ἐλθεῖν]] τινι s. die Substantiva. Man vgl. damit ἐς ἀκοὰν ἐμὰν λόγους ξένους μολεῖσθαι Aesch. Prom. 692; ἐς ὄψιν [[μολεῖν]] Pers. 179; Ch. 213; umschreibende Vrbdgn, ἑς ὀργὰς [[ἐλθεῖν]] τινι, Plat. Rep. IX, 572 a, ἐς διαφοράν, Phaedr. 232 d, εἰς φιλίαν, Lys. 214 d, wie schon Aesch. Prom. 191 εἰς ἀρθμὸν καὶ φιλότητα; εἰς ὕποπτά τινι Eur. El. 347. Zu bemerken auch ἐς τοσήνδ' ὕβριν ἥκειν Soph. O. C. 1033, ἐς [[τόδε]] τόλμης ἔβη O. R. 125, wie ἐς τοσοῦτον ἐλπίδων 771; oft in Prosa, bes. bei den Rednern; ἐς τοσοῦτο ἐγένετο, so weit kam es, Her. 8, 107; ἐς τόδ' [[ἦλθον]] Soph. O. C. 548; ἐς [[πᾶν]] [[ἔργον]] χωρεῖν, Alles wagen, El. 605; – εἰς [[πρόσθεν]], vorwärts, Eur. Hec. 960; εἰς τὸ [[πρόσθεν]] Plat. Soph. 258 c. – 2) Bei mehreren Verbis, die eine Ruhe ausdrücken, steht εἰς brachylogisch, so daß man das Verbum der Bewegung hinzudenken muß; ἐφάνη λῖς εἰς ὁδόν, er kam auf den Weg u. zeigte sich da, Il. 15, 276; so oft παρεῖναι, z. B. εἰς [[Σάρδεις]] Xen. An. 1, 2, 2, nach Sardes hingekommen sein; ὃς ἂν μὴ παρῇ εἰς ἐξέτασιν 7, 1, 11; ἐς [[ταὐτό]] Cyr. 7, 3, 41; ἐς τὸ [[στράτευμα]] Thuc. 6, 62; ἐπιδημεῖν εἰς τὴν πόλιν Aesch. 2, 154 hat Bekk. nach 1. msc. in ἐν τῇ πόλει geändert; κατασκηνοῦν εἰς κώμας, sich einquartieren u. lagern, Xen. An. 2, 2, 16; Hell. 4, 2, 23; κατέστη εἰς τὴν βα σίλειαν, er trat ein in die Herrschaft, An. 1, 1, 3; καθίστατο εἰς τὴν μάχην 1, 8, 6; ἀποστὰς εἰς Μυσούς, ἐς [[χωρίον]], fiel ab zu den M., 1, 6, 7. 2, 5, 7; εἰς Ἰθώμην Thuc. 1, 101; στῆναι εἰς [[μέτωπον]], sich hingestellt haben auf, Xen. Cyr. 2, 4, 2; στὰς εἰς ταύτην τὴν [[ἀρχήν]] Her. 3, 80; ἐς [[μέσον]] Xen. Cvr. 4, 1, 1; συλλέγεσθαι εἰς τόπον Hell. 2, 1, 6. Auch bei substant., ὁ [[ἀπόστολος]] ἐς τὴν Μίλητον ἦν Her. 1, 21; ἦν ξύνοδος εἰς Δῆλον Thuc. 3, 104. Eine ähnliche Ellipse findet Statt bei ἑάλωσαν εἰς Ἀθήνας, s. unter [[ἁλίσκομαι]], Dio Cass. 35, 17; λιπὼν πατρίδα εἰς Θήβας Hes. Sc. 12; ἐκλιπεῖν τὴν πόλιν ἐς [[χωρίον]] ὀχυρόν, ἐς τὰ [[ἄκρα]], Xen. An. 1, 2, 24; Her. 6, 100. 8, 50; in παραγγέλλειν εἰς τὰ ὅπλα, Xen. An. 1, 5, 13, fehlt ἰέναι, wie bei uns: zu den Waffen rufen; ähnlich [[βούλομαι]] ἐς τὸ [[βαλανεῖον]], ich will in das Bad, Ar. Ran. 1305; ἀξιοῦμεν εἰς τὴν ἐκκλησίαν Charit. 8, 7. Aehnl. εἰς ἀνάγκην κείμεθα, wir sind in die Nothwendigkeit versetzt. Eur. I. T. 620; Agath. 51 (IX, 677) κεῖται εἰς ὀλίγην κόνιν. Man vgl. noch καθεζόμενος εἰς τὸ [[μέσον]] Xen. Cyr. 7, 4, 4, εἰς [[ἱερόν]] Dem. 21, 227, ἵζειν εἰς θᾶκον Soph. Ant. 986, εἰς θρόνους [[καθιζάνω]] Aesch. Eum. 29. Bei späten Schriftstellern geht es geradezu in die Bedeutung von ἐν über; Long. 3, 10; οἰκοῦντι εἰς τὰ Ὕπατα Luc. asin. 1; εἰς Ἐκβάτανα ἀπέθανε Ael. V. H. 7, 8; εἰς τὸ [[πρυτανεῖον]] ἐσιτεῖτο Heliod. 1, 10; Gramm. citiren mit ζήτει εἰς τὸ [[δεῖνα]], z. B. ζήτει εἰς τὰ [[ἐπάνω]], d. h. »siehe oben«, also = ζήτει ἐν τοῖς [[ἐπάνω]]. – 3) Nicht das Eindringen in einen Ort, sondern nur die [[Richtung wohin]] bezeichnet es bei Xen. An. 4, 7, 2 ἀφίκοντο εἰς [[χωρίον]], wo sie nicht hineinkommen, wie εἰς τὸν οὐρανὸν ἥλλοντο Cyr. 1, 4, 11; τὸ εἰς Παλλήνην [[τεῖχος]], dahin gelegen, Thuc. 1, 56; vgl. 5, 82 u. Her. 2, 169; wohin man auch ὁδὸς ἐς λαύρην Od. 22, 128 u. ἡ εἰς Βοιωτοὺς [[ὁδός]] Xen. An. 5, 3, 6 rechnen kann. Dah. steht es oft bei den Verbis des [[Sehens]], εἰς ὦπα ἰδέσθαι, Hom., wie εἰς ὀφθαλμούς, Il. 24, 104, womit εἰς ὦπα ἔοικεν zu vgl.; ἰδὼν ἐς πλησίον ἄλλον, Od. 10, 37; βλέπειν εἰς τὰ νῦν πεπραγμένα Aesch. Pers. 787; vgl. Suppl. 97; εἰς σέ Soph. El. 942; εἰς οὐρανόν Xen. Cyr. 6, 4, 9; ἀποσκοπεῖν εἴς τι, Soph. O. C. 1197; λεύσσειν εἴς τινα, O. R. 1254. – So auch bei den Verbis [[sagen]], [[zeigen]], wo wir [[vor]], [[unter, ]]in [[Gegenwart]] übersetzen, vgl. ἐς φανερὸν λεγόμεναι αἰτίαι, die ins Oeffentliche ausgesprochnen, offen angegebenen Gründe, Thuc. 1, 23, mit ἀποδῦναι ἐς τὸ φανερόν, vor Aller Augen, 1, 6; ἐς ὑμᾶς ἐρῶ μῦθον Aesch. Pers. 157; ἐς πάντας αὕδα, κηρύσσειν, Soph. O. R. 93 El. 596; λέγειν εἰς φῶς Phil. 577; εἰς [[μέσον]] δεῖξαι Αχαιοῖς 605; ἐς τὸ φῶς φανεῖ O. R. 1229; εἰς ὀφθαλμούς Ant. 307; [[περί]] τινος ἐς ὑμᾶς εἰπεῖν, Her. 8, 26; ἐς βελτίστους μνησθῆναι Thuc. 8, 47; ἐς τὸν δῆμον εἰπεῖν 5, 45; Dem. 24, 47; στρατιὰν ἐπαγγέλλειν ἐς τοὺς συμμάχους, unter den Bundesgenossen ausschreiben, Thuc. 7, 17; ἐς τὸ [[βουλευτήριον]] ἀναῤῥηθῆναι Aesch. 3, 45; εἰπεῖν εἰς τὴν στρατιάν Xen. An. 5, 6, 37; εἰς τοὺς συμμάχους Cyr. 8, 4, 11; παρέχειν ἑαυτὸν σοφιστήν und [[ἐλλόγιμος]] γέγονε εἰς τοὺς ἄλλους Ἕλληνας, Plat. Gorg. 526 b Prot. 312 a; καλὸν σφίσιν ἐς τοὺς Ἕλληνας τὸ [[ἀγώνισμα]] φανεῖσθαι Thuc. 7, 56; ἔργα ἀποφήνασθαι εἰς πάντας ἀνθρώπους Plat. Menex. 239 a. So auch εἰς τοὺς ἄλλους διαβεβλῆσθαι, bei den Anderen verleumdet worden sein, Plat. Rep. VII, 539 b; ἐπαχθῆ εἶναι εἰς τοὺς πολλούς, der Menge lästig sein, Thuc. 6, 54; φιλοδοξεῖν Pol. 1, 16, 10; vgl. Xen. Hell. 3, 5, 2; οὐκ ἄγνωστον εἰς ἀνθρώπους Arr. An. 1, 12, 8. – Auch bei substant., wie [[αἰδώς]] [[τίς]] σ' ἐς Μυκηναίους ἔχει Eur. Or. 21. – 4) Nachhomerisch ist die feindliche Bdtg [[gegen]], εἰς τὴν Ἀττικὴν στρατεύειν Thuc. 3, 1. 5, 23; ἴεντο εἰς τοὺς ἀνθρώπους, stürzten auf die Feinde los, Xen. An. 4, 2, 7, vgl. 3, 2, 16; εἰς πολεμίους θεῖν Cyr. 3, 2, 9. Dah. ὀνειδίζειν εἴς τινα, Soph. O. C. 758, vgl. Phil. 518; μηδ' εἰς Ἑλένην κότον ἐκτρέψῃς Aesch. Ag. 1443, wie μηνίειν, ὀργὴν ἔχειν εἴς τινα, Soph. O. C. 969 Phil. 1293; ὀργῇ χαλεπῇ χρῆσθαι ἔς τινα, Thuc. 1, 130, vgl. 3, 85; so ἁμαρτάνειν, Aesch. Prom. 947; Soph. O. C. 972; ἡ [[ἔχθρα]] εἰς τοὺς Αργείους Thuc. 2, 68; τὸ [[ἔργον]] εἰς ἅπαντας ἦν Aesch. Spt. 1041; οἱ εἰς Μυτιλήνην πολέμιοι Xen. Hell. 1, 7, 29; οἱ στρατηγοὶ οἱ εἰς Σικελίαν Andoc. 1, 11. Auch in gutem Sinne [[gegen]], εὐσεβεῖν εἴς τινα, Soph. Ant. 727; [[δίκαιος]] εἴς τινα, Trach. 410; ἐσθλὸς εἰς ὑμᾶς [[γεγώς]] El. 24; τοιοίδε εἰς ἡμᾶς εἰσι Thuc. 1, 38; 1, 68 ἀπιστότεροι εἰς τοὺς ἄλλους. Auch bei substant., [[φιλία]] εἰς ἀμφοτέρους Thuc. 2, 9; ἡ εἰς ὑμᾶς [[εὔνοια]] Andoc. 1, 141. – 5) Bei der Zeit ist εἰς Gränzbestimmung und bedeutet – a) bis; Hom. εἰς ήῶ, ἐς ἠέλιον καταδύντα, Od. 11, 375 Il. 1, 601; Xen. An. 1, 7, 1 u. sonst; εἰς [[τόδε]], bis auf diese Zeit, Her. 7, 123; Thuc. 1, 69; εἰς ἐμέ, bis zu meiner Zeit, Her. 1, 92; Paus. oft; εἰς τόδ' ἡμέρας Soph. O. C. 1140; Aesch. Spt. 21; ἐς τί; wie lange? Il. 5, 465, wie εἰς [[πότε]] Soph. Ai. 1164; ἐς [[τότε]] Plat. Legg. VIII, 845 c; Hom. ἐς [[τῆμος]] Od. 7, 318, εἰς ὅτε 2, 99, bis zur Zeit, wann; ἐς οὗ, bis daß, Her. 1, 67. 3, 31. Vgl. [[εἰσόκε]], ἔςτε. Oft entspricht es einem vorangehenden ἐκ, wie schon Hom. ἐκ νεότητος εἰς [[γῆρας]] Il. 14, 86; οἱ ἐκ παιδὸς εἰς [[γῆρας]] σώφρονες Aesch. 1, 180; εἰς [[ἔτος]] ἐξ ἔτεος, wie unser Jahr aus, Jahr ein, Theocr. 18, 15, wobei man an örtliche Vrbdgn wie ἐς πόδας ἐκ κεφαλῆς, ἐς σφυρὸν ἐκ πτέρνης, Il. 22, 397. 23, 190, oder ἐς μυχὸν ἐξ οὐδοῦ Od. 7, 87, ἐκ τῶν ποδῶν ἐς κεφαλήν Ar. Plut. 650 denken muß. – b) die ganze, dazwischenliegende Zeit; εἰς ἐνιαυτόν, ein Jahr lang, auf ein Jahr, Od. 4, 595 Hes. Th. 740, eigtl. bis ein Jahr vollendet ist; so auch die Folgdn; εἰς ὥρας Od. 9, 133. – c) den Zeitpunkt selbst; ἐς [[θέρος]], ἐς ὀπώρην ἐλεύσεσθαι, Od. 14, 384, auf den Sommer; [[οὔτε]] ἐς τὸ παρέον [[οὔτε]] ἐς χρόνον μεταμελήσει, weder für jetzt, noch dereinst, Her. 7, 29; ἐς νύκτα ἐτελεύτα, zur Nacht, Thuc. 1, 51; ὀλίγοι ἐς τὴν ἑσπέραν σίτου ἐγεύσαντο Xen. An. 3, 1, 3; vgl. Ar. Eccl. 1092; ἐς τρίτην ἡμέραν παρεῖναι Xen. Cyr. 3, 1, 42; οὐκ εἰς [[μακράν]], d. i. bald, 5, 4, 21; ἐς τὴν ὑστεραίαν προῆγε Pol. 5, 13, 8; ἐς [[ὕστερον]] Od. 12, 126; Her. 5, 74; ἐς [[αὔριον]] Od. 7, 317; ἡ εἰς [[αὔριον]] [[ἡμέρα]], der morgende Tag, Soph. O. C. 573. Vgl. [[εἰσαεί]], [[εἰσαυτίκα]], εἰσαῦθις, εἰς ἔτι u. ä. – 6) Bei der Zahl drückt es ebenfalls die Gränze aus, [[bis an]], [[höchstens]], u. allgemein, [[gegen]], an, εἰς τριακάδας [[δέκα]] νεῶν Aesch. Pers. 331; bes. mit dem Artikel, σχεδὸν εἰς τοὺς [[ἑκατόν]] Xen. An. 4, 8, 15; Cyr. 6, 2, 7 u. sonst überall; vgl. ἐς [[δίσκουρα]] λέλειπτο, auf Diskusweite, Il. 23, 523; ἐς δραχμὴν ἑκάστῳ διέδωκε, zum Belauf einer Drachme, Thuc. 8, 29; τριήρεις τοῖς τυράννοις ἐς [[πλῆθος]] ἐγένοντο, in Menge, 1, 14; ἐς [[τρίς]] Xen. An. 6, 2, 16 Cyr. 7, 1, 4, bis auf dreimal. – Distributiv steht es bes. bei Angabe der Stellung der Soldaten; εἰς δύο, je zwei Mann [[neben]] einander, Xen. An. 2, 4, 26 Hell. 5, 1, 22; εἰς [[ὀκτώ]], je acht Mann [[hinter]] einander, An. 7, 1, 23 Hell. 3, 2, 16. – 7) An βλέπειν εἴς τι reiht sich die [[Zweck]]bedeutung: zu, für, ἐς πό λεμον θωρήσσεσθαι Il. 8, 376; vgl. ἐσταλμένος εἰς π. Xen. An. 3, 2, 7; ἵππους εἰς ἱππέας κατασκευάζειν 6, 1, 14; ἔῤῥωντο εἰς πόλεμον Thuc. 2, 8; ἡ ἐς πόλεμον [[παρασκευή]] 1, 25; – εἰπεῖν εἰς ἀγαθόν, zum Guten reden, um Gutes zu bewirken, Hom. Iliad. 9, 102, vgl. 23, 305; πείσεται εἰς ἀγαθόν, zu seinem Besten, 11, 789; ἐς φόβον 15, 310; ἐς πλόον Pind. P. 1, 34; εἰς [[κέρδος]] τι δρᾶν, Soph. Phil. 111, wie εἰς [[χάριν]] πράττειν, zu Gefallen, O. R. 1353, εἰς τί, wozu? Trach. 412, vgl. Theocr. 27, 54; εἰς κατασκοπὴν πέμψον Phil. 45; εἰς ἔλεγχον ἐξιών 98; εἰς μάχην ὁρμᾶν Aesch. Pers. 386, wie εἰς τὸ διώκειν Xen. An. 1, 8, 25; λακτίσας Δίκας βωμὸν εἰς ἀφάνειαν Aeschyl. Ag. 374; oft Eur.; εἰς ὑποδήματα δέδοται Her. 2, 98; εἰς [[ἱμάτιον]] Ar. Plut. 984; ἔδωκε χρήματα εἰς τὴν στρατιάν Xen. An. 1, 1, 27; δαπανᾶν εἴς τι, 1, 3, 3; εἰς [[Διονύσια]] χορηγήσας Is. 5, 36; εἰς τὸν πόλεμον εἰσφορὰς εἰσφέρειν 45; εἰς πόλεμον ἀποθνήσκουσι μαχόμενοι 46; – anders ist δανείζειν εἴς τι, Dem. 27, 28; συμβάλλειν συμβόλαια εἰς τὰ ἀνδράποδα 27; εἰς πίστιν δέδωκα, auf Credit, 32, 16; sonst ἐπί τινι; – θήραν ἐποιοῦντο εἰς τὴν ἑορτήν Xen. An. 5, 3, 10; ἐς χλαῖναν πόκον δωρεῖσθαι, zum Kleide, Theocr. 5, 98; εἰς τὰ κρέα μόσχον ἔλαβες Ath. XIV, 644 e; ἐς γράμματα, um zu lernen, Plat. Legg. VII, 809 e. – Bei adject.; [[ἐπιτήδειος]] ἔς τι, geeignet zu Etwas, Her. 1, 115; [[σύμφορος]] ἔς τι, 8, 60; [[εὐπρεπής]], 2, 116; βέλτιον εἰς [[δικαστήριον]] Plat. Theaet. 178 e; καλὸν εἰς τὴν στρατιάν Xen. Cyr. 3, 3, 6; [[χρήσιμος]] n. ä., s. die einzelnen Wörter; εἰς τὸ πρᾶγμά ἐστι ist zweckdienlich, Dem. 36, 54. – Auch ἐξάγει τὸ [[στράτευμα]], εἰς τὸ μὴ φοβεῖσθαι, damit nicht, Xen. An. 7, 8, 20, vgl. Mem. 3, 6, 2. – Adverbialisch werden Vrbdgn wie ἐς καλὸν εἶπας Soph. Phil. 78; ἐς [[τάχος]] παίει Ar. Ach. 656, wo der schol. ἐς [[τάχος]], εἰς [[κάλλος]] γράφειν anführt. – Bei Sp., wie Hel., führt es das Prädicat ein, τὸ προστυχὸν εἰς [[ὅπλον]] ἁρπάζεσθαι, τὴν πήραν εἰς καθέδραν ποιεῖσθαι, als Waffe, zum Sitz; womit man Vrbdgn wie εἰς ἄνδρας ἐκ μειρακίων τελευτῶσι Plat. Teaet. 173 b, εἰς ἄνδρα γενειῶν Theocr. 13, 28 vergleiche. – 8) Ähnlich ist die Bdtg[[ in Ansehung]], [[in Rücksicht auf]] [[entstanden]]; die nähere Bestimmung bei Adjectivis einführend, [[πρῶτος]] εἰς εὐψυχίαν Aesch. Pers. 318, vgl. Plat. Charmid. 158 a; ἐς τὸ [[πᾶν]], oft bei Tragg. u. sonst, in jeder Beziehung; z. B. ἐτητύμως Aesch. Ag. 668, [[βίαιος]] Prom. 738; [[σῶμα]] οὐ σπουδαῖον ἐς ὄψιν Soph. O. C. 583; Ai. 863; ἐς τί; ''[[sc.]]'' δυστυχὴς [[ἦσθα]], worin? O. C. 528; ἐς τὰ ἄλλα, z. B. [[μέγας]], Thuc. 1, 1; [[ἄτολμος]] εἰς τὴν μάχην 4, 55; [[ἀνυπέρβλητος]] εἰς πονηρίαν Antiphan. Ath. III, 108 f; [[πόλις]] μεγίστη καὶ εὐδοκιμωτάτη εἰς σοφίαν καὶ ἰσχύν Plat. Apol. 29 d; τοιοῦτος εἰς φρόνησιν Conv. 219 d; ἀγαθὸς εἰς πόλεμον Xen. An. 1, 9, 14; Cyr. 3, 3, 6; εἰς χρήματα [[ἀναιδής]] Dem. 22, 75; vgl. Xen. Cyr. 8, 8, 6; – τὸ μὲν γὰρ εἰς ἔμ' οὐ κακῶς ἔχει Eur. I. T. 691, was mich anbetrifft, ich befinde mich nicht schlecht; vgl. εἰς τὸν ἑαυτῶν βίον ἀσφαλῶς ἔχειν Dem. 10, 45; – bei Verbis; τό γ' εἰς ἑαυτὸν [[πᾶν]] ἐλευθεροῖ [[στόμα]] Soph. O. R. 706; εἰς ὅσον ἐγὼ [[σθένω]], wie weit, Phil. 1389; εἰς πλεῖστον πενθεῖν O. C. 743; ἐς τὰ [[μάλιστα]], häufig; ἐς [[δαιμόνιον]] [[τέρας]] ἀμφιγνοῶ Ant. 372; εἰς δικαιοσύνην ἐπιδείκνυσθαι Xen. An. 1, 9, 16; εἰς χρήματα δίκην λαμβάνειν u. εἰς τὰ σώματα τιμωρίας ποιεῖσθαι, an Geld u. am Leben strafen, Dem. 22, 55; vgl. Plat. Legg. IX, 865 c VI, 774 b. Bes. bei anklagen, loben, tadeln u. ä.; ἐς φιλίαν μέμφεσθαι Xen. An. 2, 6, 30; εἰς τὰ πολεμικὰ καταφρονεῖσθαι Hell. 7, 4, 30; διαβάλλειν εἴς τι Thuc. 8, 88; σκώπτειν εἰς τὰ ῥάκια, εἰς μαλακίαν, Ar. Pax 740 Dem. 18, 245; εἴς τε μαλακίαν καὶ εἰς τὴν ἀβουλίαν ἀπελύσαντο, sie rechtfertigten sich gegen den Vorwurf der Weichlichkeit, Thuc. 5, 75; ἐνεκάλουν εἰς τὴν ἐπιτροπήν, über die Vormundschaft, Dem. 38, 3; so Folgde, wie ὀνειδίζειν τινὶ ἐς ἀσέλγειαν Pol. 5, 11, 2; [[κατά]] τινος εἰπεῖν εἰς ἀχαριστίαν 17, 6, 7; σκώπτειν εἴς τινα Plut. Symp. 2, 9; ἐκωμῳδοῦντο εἰς βλασφήμους Harpocr. p. 9. Auch [[πρῆγμα]] γενόμενον εἴς τινα, ein Vorfall, der sich mit Einem zugetragen, Her. 1, 114. – Absolut, εἰς δὲ τὴν τοῦ καρποῦ κομιδήν, was das anbetrifft, Xen. Cyr. 5, 4, 25; ἐς τὰ ἄλλα, in anderer Hinsicht, Thuc. 1, 1. – Auch bei Substantivis; [[δέος]] εἰς Συρακοσίους Thuc. 6, 85; τιμὴ εἰς [[γῆρας]] Plat. Legg. IX, 879 c; [[δόξα]] εἰς ἀνδρειότητα Xen. An. 6, 3, 14; ὁ εἰς ταῦτα [[ἔλεος]] Dem. 25, 84; ἀγὼν εἰς τὸν Δία = Ὀλύμπια, Thom. Mag. vit. Pind.; ἡ ἐς γῆν καὶ θάλατταν [[ἀρχή]] Thuc. 8, 46. – Oft wird diese Vrbdg eine bloße Umschreibung; τὰ εἰς τὴν τέχνην Plat. Rep. IV, 421 d; οἱ λόγοι οἱ εἰς τὰ δικαστήρια Euthyd. 304 d. – Man merke noch εἰς τὸν ἀριθμὸν ἐφάνη τρισχίλια, für die Zählung oder nach der Zählung, Her. 7, 97; vgl. Thuc. 2, 7 εἰς τὸν πάντα ἀριθμόν u. εἰς λόγον, in Rücksicht auf, – 9) Hieraus entwickelt sich die Bdtg [[gemäß]], [[nach]]; Aesch. Ag. 68 ist εἰς το πεπρωμένον τελεῖται das Vollenden nach dem Schicksal, rin Aufgehen in das Beschlossene; εἰς νόμον ἑαυτῷ ταξάμενος Plat. Legg. V, 733 d; ἐς δύναμιν, nach Kräften, Rep. IX, 590 d; Xen. An. 2, 3, 23 u. oft; ἐς τὸ δυνατόν Cyr. 2, 1, 22, soweit es möglich ist; λέγειν εἰς ὑπερβολὴν δυνατοῦ Aesch. 1, 180; ἐς [[ἀργύριον]] λογισθέν, auf Geld berechnet, 6, 1, 33; εἰς τὸν αὐτὸν λόγον Plat. Rep. I, 353 d; εἰς ἓν [[μέλος]], nach [[einer]] Weise, Theocr. 18, 7; oft bei Lucian., ἐς τὸν πωλικόν, εἰς ὄρνιθος τρόπον, Zeux. 4 Halc. 1. Manche Wendungen der Art werden rein adverbial gebraucht, wie ἐς το ἀκριβὲς εἰπεῖν, genau, Thuc. 6, 82; ἐς ἀκρίβειαν Plat. Legg. VII, 809 e; ἐς [[δέον]] u. εἰς τὸ [[δέον]], Soph. Ant. 386 Her. 2, 173; ἐς καλόν (Suid. εὐκαίρως), Xen. An. 4, 7, 3; Plat. Conv. 174 e u. sonst; ἐς [[κάλλος]] ζῆν Xen. Cyr. 8, 1, 33; ἐς καλόν Plat. Theag. 122 a; εἰς ἀφθονίαν παρέχειν, = ἀφθόνως, Xen. An. 7, 1, 33.
|ptext=[[https://www.translatum.gr/images/pape/pape-01-0736.png Seite 736]] und ἐς, letzteres ion., dor. u. altattisch, z. B. bei Thuc. vorherrschend; bei den Dichtern vermischt gebraucht; in den Tragg. u. Com. herrscht εἰς; in gewissen Vrbdgn, wie ἐς κόρακας, ἐς μακαρίαν, kommt εἰς nie vor; im Xen. schwankt die Lesart oft, vgl. Krüger zu An. 5, 3, 1; altdorisch u. böotisch ἐν, Greg. Cor. 355; auch ἴς in böotischen Inschriften; die alte Grundform ἐνς erwähnt Eust. Il. p. 722, 60 als argivisch u. kretisch, vgl. Koen zu Greg. C. a. a. O. – Präposition mit dem acc. Die allg. Bedeutung ist die Bewegung nach Etwas hinein. – 1) am häufigsten von Ländern bei den Verbis, die eine Bewegung ausdrücken, von Hom. an überall. Nach griechischer Weise steht oft der Name der Einwohner für das Land, εἰς τοὺς Καρδούχους ἐμβάλλειν Xen. An. 3, 6, 16; ἄγειν εἰς τοὺς βαρβάρους 1, 3, 5, wo Krüger zu vgl.; εἰς Πέρσας πορεύεσθαι Cyr. 8, 5, 20; πέμπειν εἰς τοὺς Βοιωτούς Thuc. 5, 32. – Damit ist zu vgl. die bei den Rednern häufige Vrbdg ἰόντες εἰς ὑμᾶς, Antipho 5, 80; Lycurg. 11; γραφεὶς τὸν ἀγῶνα τοῦτον εἰς ὑμᾶς εἰσῆλθον Dem. 18, 103; vgl. 28, 17; εἰς τὸν δῆμον παρελθεῖν Thuc. 5, 45; εἴ τις εἰσίοι γραφὴν εἰς [[δικαστήριον]] Aesch. 3, 191; überall an die Volks- oder Richterversammlung als den Ort zu denken, in den man eintritt. So auch εἰς θεὸν [[ἐλθεῖν]], zum Orakel, Pind. Ol. 7, 31; vgl. εἰς ἀνθρώπους ἐξιέναι Xen. Mem. 1, 1, 4; ἀφικόμην ἐχθροὺς εἰς ἄνδρας Eur. Phoen. 361; κατέφυγον εἰς αὐτούς Thuc. 4, 113. – Bei einzelnen Personen setzen εἰς von Hom. an nur Dichter; σπεύδομαι εἰς Ἀχιλῆα Il. 15, 402; εἰς Ἀγαμέμνονα [[δῖον]] ἄγον 23, 36; ἐλθὼν ἐς δέσποιναν Od. 14, 127; wo immer auch noch an den Ort, das Zelt od. Haus gedacht werden kann, vgl. Spitzner exc. zu Il. XXXV, εἰς Ἐπιμηθέα [[πέμπε]] Hes. O. 84; ἐς [[βασιλέα]] Thuc. 1, 137, wie Ael. V. H. 2, 1, steht einzeln; vgl. Ath. VIII, 337 c. – In den häufigen Vrbdgn εἰς Ἀΐδαο u. Ἅιδου fehlt οἶκον oder ein ähnliches Substantivum; ἷξεν εἰς Πριάμοιο Il. 24, 160; τά γ' ἐς Ἀλκινόοιο φέρον Od. 8, 418; ἀνδρὸς ἐς ἀφνειοῦ, in das Haus eines begüterten Mannes, Il. 24, 482; ἐς πατρὸς ἀπονέεσθαι Od. 2, 195. So heißt εἰς διδασκάλων πέμπειν, ἐς διδασκάλου φοιτᾶν in die Schule schicken, gehen, Plat. Prot. 325 d Lach. 201 a; ἐς Αγαθῶνος Conv. 174 a; so auch φέρων ἐς [[σεωυτοῦ]], in dein Haus, Her. 1, 108. 9, 108; vgl. 1, 119; ἐπειδὰν εἰσέλθω [[οἴκαδε]] ἐς ἐμαυτοῦ Plat. Hipp. mai. 304 d, wie [[οἴκαδε]] εἰς ἑαυτῶν Ar. Lys. 1070; auch bei Tempeln heißt es εἰς Ἀθηναίης, in den Tempel der Athene, Il. 6, 379; εἰς Αμφιάρεω ἀνέθηκε Her. 1, 192; ἐς Γαιαόχου Xen. Hell. 6, 5, 30; Ar. Plut. 411; Hom. sagt sogar ἂψ δ' εἰς Αἰγύπτοιο – στῆσα [[νέας]], Od. 4, 581, in des Aegyptus Strom. Oft wird es wie bei uns übertr., ἐς νόσον, εἰς [[ὕπνον]] πεσεῖν, εἰς κακόν, Aesch. Prom. 471 Soph. Phil. 815 Ant. 240; εἰς θυμὸν βαλεῖν, O. R. 975; über die Vrbdgn ἐς χεῖρας, λόγους [[ἐλθεῖν]] τινι s. die Substantiva. Man vgl. damit ἐς ἀκοὰν ἐμὰν λόγους ξένους μολεῖσθαι Aesch. Prom. 692; ἐς ὄψιν [[μολεῖν]] Pers. 179; Ch. 213; umschreibende Vrbdgn, ἑς ὀργὰς [[ἐλθεῖν]] τινι, Plat. Rep. IX, 572 a, ἐς διαφοράν, Phaedr. 232 d, εἰς φιλίαν, Lys. 214 d, wie schon Aesch. Prom. 191 εἰς ἀρθμὸν καὶ φιλότητα; εἰς ὕποπτά τινι Eur. El. 347. Zu bemerken auch ἐς τοσήνδ' ὕβριν ἥκειν Soph. O. C. 1033, ἐς [[τόδε]] τόλμης ἔβη O. R. 125, wie ἐς τοσοῦτον ἐλπίδων 771; oft in Prosa, bes. bei den Rednern; ἐς τοσοῦτο ἐγένετο, so weit kam es, Her. 8, 107; ἐς τόδ' [[ἦλθον]] Soph. O. C. 548; ἐς [[πᾶν]] [[ἔργον]] χωρεῖν, Alles wagen, El. 605; – εἰς [[πρόσθεν]], vorwärts, Eur. Hec. 960; εἰς τὸ [[πρόσθεν]] Plat. Soph. 258 c. – 2) Bei mehreren Verbis, die eine Ruhe ausdrücken, steht εἰς brachylogisch, so daß man das Verbum der Bewegung hinzudenken muß; ἐφάνη λῖς εἰς ὁδόν, er kam auf den Weg u. zeigte sich da, Il. 15, 276; so oft παρεῖναι, z. B. εἰς [[Σάρδεις]] Xen. An. 1, 2, 2, nach Sardes hingekommen sein; ὃς ἂν μὴ παρῇ εἰς ἐξέτασιν 7, 1, 11; ἐς [[ταὐτό]] Cyr. 7, 3, 41; ἐς τὸ [[στράτευμα]] Thuc. 6, 62; ἐπιδημεῖν εἰς τὴν πόλιν Aesch. 2, 154 hat Bekk. nach 1. msc. in ἐν τῇ πόλει geändert; κατασκηνοῦν εἰς κώμας, sich einquartieren u. lagern, Xen. An. 2, 2, 16; Hell. 4, 2, 23; κατέστη εἰς τὴν βα σίλειαν, er trat ein in die Herrschaft, An. 1, 1, 3; καθίστατο εἰς τὴν μάχην 1, 8, 6; ἀποστὰς εἰς Μυσούς, ἐς [[χωρίον]], fiel ab zu den M., 1, 6, 7. 2, 5, 7; εἰς Ἰθώμην Thuc. 1, 101; στῆναι εἰς [[μέτωπον]], sich hingestellt haben auf, Xen. Cyr. 2, 4, 2; στὰς εἰς ταύτην τὴν [[ἀρχήν]] Her. 3, 80; ἐς [[μέσον]] Xen. Cvr. 4, 1, 1; συλλέγεσθαι εἰς τόπον Hell. 2, 1, 6. Auch bei substant., ὁ [[ἀπόστολος]] ἐς τὴν Μίλητον ἦν Her. 1, 21; ἦν ξύνοδος εἰς Δῆλον Thuc. 3, 104. Eine ähnliche Ellipse findet Statt bei ἑάλωσαν εἰς Ἀθήνας, s. unter [[ἁλίσκομαι]], Dio Cass. 35, 17; λιπὼν πατρίδα εἰς Θήβας Hes. Sc. 12; ἐκλιπεῖν τὴν πόλιν ἐς [[χωρίον]] ὀχυρόν, ἐς τὰ [[ἄκρα]], Xen. An. 1, 2, 24; Her. 6, 100. 8, 50; in παραγγέλλειν εἰς τὰ ὅπλα, Xen. An. 1, 5, 13, fehlt ἰέναι, wie bei uns: zu den Waffen rufen; ähnlich [[βούλομαι]] ἐς τὸ [[βαλανεῖον]], ich will in das Bad, Ar. Ran. 1305; ἀξιοῦμεν εἰς τὴν ἐκκλησίαν Charit. 8, 7. Aehnl. εἰς ἀνάγκην κείμεθα, wir sind in die Nothwendigkeit versetzt. Eur. I. T. 620; Agath. 51 (IX, 677) κεῖται εἰς ὀλίγην κόνιν. Man vgl. noch καθεζόμενος εἰς τὸ [[μέσον]] Xen. Cyr. 7, 4, 4, εἰς [[ἱερόν]] Dem. 21, 227, ἵζειν εἰς θᾶκον Soph. Ant. 986, εἰς θρόνους [[καθιζάνω]] Aesch. Eum. 29. Bei späten Schriftstellern geht es geradezu in die Bedeutung von ἐν über; Long. 3, 10; οἰκοῦντι εἰς τὰ Ὕπατα Luc. asin. 1; εἰς Ἐκβάτανα ἀπέθανε Ael. V. H. 7, 8; εἰς τὸ [[πρυτανεῖον]] ἐσιτεῖτο Heliod. 1, 10; Gramm. citiren mit ζήτει εἰς τὸ [[δεῖνα]], z. B. ζήτει εἰς τὰ [[ἐπάνω]], d. h. »siehe oben«, also = ζήτει ἐν τοῖς [[ἐπάνω]]. – 3) Nicht das Eindringen in einen Ort, sondern nur die [[Richtung wohin]] bezeichnet es bei Xen. An. 4, 7, 2 ἀφίκοντο εἰς [[χωρίον]], wo sie nicht hineinkommen, wie εἰς τὸν οὐρανὸν ἥλλοντο Cyr. 1, 4, 11; τὸ εἰς Παλλήνην [[τεῖχος]], dahin gelegen, Thuc. 1, 56; vgl. 5, 82 u. Her. 2, 169; wohin man auch ὁδὸς ἐς λαύρην Od. 22, 128 u. ἡ εἰς Βοιωτοὺς [[ὁδός]] Xen. An. 5, 3, 6 rechnen kann. Dah. steht es oft bei den Verbis des [[Sehens]], εἰς ὦπα ἰδέσθαι, Hom., wie εἰς ὀφθαλμούς, Il. 24, 104, womit εἰς ὦπα ἔοικεν zu vgl.; ἰδὼν ἐς πλησίον ἄλλον, Od. 10, 37; βλέπειν εἰς τὰ νῦν πεπραγμένα Aesch. Pers. 787; vgl. Suppl. 97; εἰς σέ Soph. El. 942; εἰς οὐρανόν Xen. Cyr. 6, 4, 9; ἀποσκοπεῖν εἴς τι, Soph. O. C. 1197; λεύσσειν εἴς τινα, O. R. 1254. – So auch bei den Verbis [[sagen]], [[zeigen]], wo wir [[vor]], [[unter, ]]in [[Gegenwart]] übersetzen, vgl. ἐς φανερὸν λεγόμεναι αἰτίαι, die ins Oeffentliche ausgesprochnen, offen angegebenen Gründe, Thuc. 1, 23, mit ἀποδῦναι ἐς τὸ φανερόν, vor Aller Augen, 1, 6; ἐς ὑμᾶς ἐρῶ μῦθον Aesch. Pers. 157; ἐς πάντας αὕδα, κηρύσσειν, Soph. O. R. 93 El. 596; λέγειν εἰς φῶς Phil. 577; εἰς [[μέσον]] δεῖξαι Αχαιοῖς 605; ἐς τὸ φῶς φανεῖ O. R. 1229; εἰς ὀφθαλμούς Ant. 307; [[περί]] τινος ἐς ὑμᾶς εἰπεῖν, Her. 8, 26; ἐς βελτίστους μνησθῆναι Thuc. 8, 47; ἐς τὸν δῆμον εἰπεῖν 5, 45; Dem. 24, 47; στρατιὰν ἐπαγγέλλειν ἐς τοὺς συμμάχους, unter den Bundesgenossen ausschreiben, Thuc. 7, 17; ἐς τὸ [[βουλευτήριον]] ἀναῤῥηθῆναι Aesch. 3, 45; εἰπεῖν εἰς τὴν στρατιάν Xen. An. 5, 6, 37; εἰς τοὺς συμμάχους Cyr. 8, 4, 11; παρέχειν ἑαυτὸν σοφιστήν und [[ἐλλόγιμος]] γέγονε εἰς τοὺς ἄλλους Ἕλληνας, Plat. Gorg. 526 b Prot. 312 a; καλὸν σφίσιν ἐς τοὺς Ἕλληνας τὸ [[ἀγώνισμα]] φανεῖσθαι Thuc. 7, 56; ἔργα ἀποφήνασθαι εἰς πάντας ἀνθρώπους Plat. Menex. 239 a. So auch εἰς τοὺς ἄλλους διαβεβλῆσθαι, bei den Anderen verleumdet worden sein, Plat. Rep. VII, 539 b; ἐπαχθῆ εἶναι εἰς τοὺς πολλούς, der Menge lästig sein, Thuc. 6, 54; φιλοδοξεῖν Pol. 1, 16, 10; vgl. Xen. Hell. 3, 5, 2; οὐκ ἄγνωστον εἰς ἀνθρώπους Arr. An. 1, 12, 8. – Auch bei substant., wie [[αἰδώς]] [[τίς]] σ' ἐς Μυκηναίους ἔχει Eur. Or. 21. – 4) Nachhomerisch ist die feindliche Bdtg [[gegen]], εἰς τὴν Ἀττικὴν στρατεύειν Thuc. 3, 1. 5, 23; ἴεντο εἰς τοὺς ἀνθρώπους, stürzten auf die Feinde los, Xen. An. 4, 2, 7, vgl. 3, 2, 16; εἰς πολεμίους θεῖν Cyr. 3, 2, 9. Dah. ὀνειδίζειν εἴς τινα, Soph. O. C. 758, vgl. Phil. 518; μηδ' εἰς Ἑλένην κότον ἐκτρέψῃς Aesch. Ag. 1443, wie μηνίειν, ὀργὴν ἔχειν εἴς τινα, Soph. O. C. 969 Phil. 1293; ὀργῇ χαλεπῇ χρῆσθαι ἔς τινα, Thuc. 1, 130, vgl. 3, 85; so ἁμαρτάνειν, Aesch. Prom. 947; Soph. O. C. 972; ἡ [[ἔχθρα]] εἰς τοὺς Αργείους Thuc. 2, 68; τὸ [[ἔργον]] εἰς ἅπαντας ἦν Aesch. Spt. 1041; οἱ εἰς Μυτιλήνην πολέμιοι Xen. Hell. 1, 7, 29; οἱ στρατηγοὶ οἱ εἰς Σικελίαν Andoc. 1, 11. Auch in gutem Sinne [[gegen]], εὐσεβεῖν εἴς τινα, Soph. Ant. 727; [[δίκαιος]] εἴς τινα, Trach. 410; ἐσθλὸς εἰς ὑμᾶς [[γεγώς]] El. 24; τοιοίδε εἰς ἡμᾶς εἰσι Thuc. 1, 38; 1, 68 ἀπιστότεροι εἰς τοὺς ἄλλους. Auch bei substant., [[φιλία]] εἰς ἀμφοτέρους Thuc. 2, 9; ἡ εἰς ὑμᾶς [[εὔνοια]] Andoc. 1, 141. – 5) Bei der Zeit ist εἰς Gränzbestimmung und bedeutet – a) bis; Hom. εἰς ήῶ, ἐς ἠέλιον καταδύντα, Od. 11, 375 Il. 1, 601; Xen. An. 1, 7, 1 u. sonst; εἰς [[τόδε]], bis auf diese Zeit, Her. 7, 123; Thuc. 1, 69; εἰς ἐμέ, bis zu meiner Zeit, Her. 1, 92; Paus. oft; εἰς τόδ' ἡμέρας Soph. O. C. 1140; Aesch. Spt. 21; ἐς τί; wie lange? Il. 5, 465, wie εἰς [[πότε]] Soph. Ai. 1164; ἐς [[τότε]] Plat. Legg. VIII, 845 c; Hom. ἐς [[τῆμος]] Od. 7, 318, εἰς ὅτε 2, 99, bis zur Zeit, wann; ἐς οὗ, bis daß, Her. 1, 67. 3, 31. Vgl. [[εἰσόκε]], ἔςτε. Oft entspricht es einem vorangehenden ἐκ, wie schon Hom. ἐκ νεότητος εἰς [[γῆρας]] Il. 14, 86; οἱ ἐκ παιδὸς εἰς [[γῆρας]] σώφρονες Aesch. 1, 180; εἰς [[ἔτος]] ἐξ ἔτεος, wie unser Jahr aus, Jahr ein, Theocr. 18, 15, wobei man an örtliche Vrbdgn wie ἐς πόδας ἐκ κεφαλῆς, ἐς σφυρὸν ἐκ πτέρνης, Il. 22, 397. 23, 190, oder ἐς μυχὸν ἐξ οὐδοῦ Od. 7, 87, ἐκ τῶν ποδῶν ἐς κεφαλήν Ar. Plut. 650 denken muß. – b) die ganze, dazwischenliegende Zeit; εἰς ἐνιαυτόν, ein Jahr lang, auf ein Jahr, Od. 4, 595 Hes. Th. 740, eigtl. bis ein Jahr vollendet ist; so auch die Folgdn; εἰς ὥρας Od. 9, 133. – c) den Zeitpunkt selbst; ἐς [[θέρος]], ἐς ὀπώρην ἐλεύσεσθαι, Od. 14, 384, auf den Sommer; [[οὔτε]] ἐς τὸ παρέον [[οὔτε]] ἐς χρόνον μεταμελήσει, weder für jetzt, noch dereinst, Her. 7, 29; ἐς νύκτα ἐτελεύτα, zur Nacht, Thuc. 1, 51; ὀλίγοι ἐς τὴν ἑσπέραν σίτου ἐγεύσαντο Xen. An. 3, 1, 3; vgl. Ar. Eccl. 1092; ἐς τρίτην ἡμέραν παρεῖναι Xen. Cyr. 3, 1, 42; οὐκ εἰς [[μακράν]], d. i. bald, 5, 4, 21; ἐς τὴν ὑστεραίαν προῆγε Pol. 5, 13, 8; ἐς [[ὕστερον]] Od. 12, 126; Her. 5, 74; ἐς [[αὔριον]] Od. 7, 317; ἡ εἰς [[αὔριον]] [[ἡμέρα]], der morgende Tag, Soph. O. C. 573. Vgl. [[εἰσαεί]], [[εἰσαυτίκα]], εἰσαῦθις, εἰς ἔτι u. ä. – 6) Bei der Zahl drückt es ebenfalls die Gränze aus, [[bis an]], [[höchstens]], u. allgemein, [[gegen]], an, εἰς τριακάδας [[δέκα]] νεῶν Aesch. Pers. 331; bes. mit dem Artikel, σχεδὸν εἰς τοὺς [[ἑκατόν]] Xen. An. 4, 8, 15; Cyr. 6, 2, 7 u. sonst überall; vgl. ἐς [[δίσκουρα]] λέλειπτο, auf Diskusweite, Il. 23, 523; ἐς δραχμὴν ἑκάστῳ διέδωκε, zum Belauf einer Drachme, Thuc. 8, 29; τριήρεις τοῖς τυράννοις ἐς [[πλῆθος]] ἐγένοντο, in Menge, 1, 14; ἐς [[τρίς]] Xen. An. 6, 2, 16 Cyr. 7, 1, 4, bis auf dreimal. – Distributiv steht es bes. bei Angabe der Stellung der Soldaten; εἰς δύο, je zwei Mann [[neben]] einander, Xen. An. 2, 4, 26 Hell. 5, 1, 22; εἰς [[ὀκτώ]], je acht Mann [[hinter]] einander, An. 7, 1, 23 Hell. 3, 2, 16. – 7) An βλέπειν εἴς τι reiht sich die [[Zweck]]bedeutung: zu, für, ἐς πό λεμον θωρήσσεσθαι Il. 8, 376; vgl. ἐσταλμένος εἰς π. Xen. An. 3, 2, 7; ἵππους εἰς ἱππέας κατασκευάζειν 6, 1, 14; ἔῤῥωντο εἰς πόλεμον Thuc. 2, 8; ἡ ἐς πόλεμον [[παρασκευή]] 1, 25; – εἰπεῖν εἰς ἀγαθόν, zum Guten reden, um Gutes zu bewirken, Hom. Iliad. 9, 102, vgl. 23, 305; πείσεται εἰς ἀγαθόν, zu seinem Besten, 11, 789; ἐς φόβον 15, 310; ἐς πλόον Pind. P. 1, 34; εἰς [[κέρδος]] τι δρᾶν, Soph. Phil. 111, wie εἰς [[χάριν]] πράττειν, zu Gefallen, O. R. 1353, εἰς τί, wozu? Trach. 412, vgl. Theocr. 27, 54; εἰς κατασκοπὴν πέμψον Phil. 45; εἰς ἔλεγχον ἐξιών 98; εἰς μάχην ὁρμᾶν Aesch. Pers. 386, wie εἰς τὸ διώκειν Xen. An. 1, 8, 25; λακτίσας Δίκας βωμὸν εἰς ἀφάνειαν Aeschyl. Ag. 374; oft Eur.; εἰς ὑποδήματα δέδοται Her. 2, 98; εἰς [[ἱμάτιον]] Ar. Plut. 984; ἔδωκε χρήματα εἰς τὴν στρατιάν Xen. An. 1, 1, 27; δαπανᾶν εἴς τι, 1, 3, 3; εἰς [[Διονύσια]] χορηγήσας Is. 5, 36; εἰς τὸν πόλεμον εἰσφορὰς εἰσφέρειν 45; εἰς πόλεμον ἀποθνήσκουσι μαχόμενοι 46; – anders ist δανείζειν εἴς τι, Dem. 27, 28; συμβάλλειν συμβόλαια εἰς τὰ ἀνδράποδα 27; εἰς πίστιν δέδωκα, auf Credit, 32, 16; sonst ἐπί τινι; – θήραν ἐποιοῦντο εἰς τὴν ἑορτήν Xen. An. 5, 3, 10; ἐς χλαῖναν πόκον δωρεῖσθαι, zum Kleide, Theocr. 5, 98; εἰς τὰ κρέα μόσχον ἔλαβες Ath. XIV, 644 e; ἐς γράμματα, um zu lernen, Plat. Legg. VII, 809 e. – Bei adject.; [[ἐπιτήδειος]] ἔς τι, geeignet zu Etwas, Her. 1, 115; [[σύμφορος]] ἔς τι, 8, 60; [[εὐπρεπής]], 2, 116; βέλτιον εἰς [[δικαστήριον]] Plat. Theaet. 178 e; καλὸν εἰς τὴν στρατιάν Xen. Cyr. 3, 3, 6; [[χρήσιμος]] n. ä., s. die einzelnen Wörter; εἰς τὸ πρᾶγμά ἐστι ist zweckdienlich, Dem. 36, 54. – Auch ἐξάγει τὸ [[στράτευμα]], εἰς τὸ μὴ φοβεῖσθαι, damit nicht, Xen. An. 7, 8, 20, vgl. Mem. 3, 6, 2. – Adverbialisch werden Vrbdgn wie ἐς καλὸν εἶπας Soph. Phil. 78; ἐς [[τάχος]] παίει Ar. Ach. 656, wo der schol. ἐς [[τάχος]], εἰς [[κάλλος]] γράφειν anführt. – Bei Sp., wie Hel., führt es das Prädicat ein, τὸ προστυχὸν εἰς [[ὅπλον]] ἁρπάζεσθαι, τὴν πήραν εἰς καθέδραν ποιεῖσθαι, als Waffe, zum Sitz; womit man Vrbdgn wie εἰς ἄνδρας ἐκ μειρακίων τελευτῶσι Plat. Teaet. 173 b, εἰς ἄνδρα γενειῶν Theocr. 13, 28 vergleiche. – 8) Ähnlich ist die Bdtg [[in Ansehung]], [[in Rücksicht auf]] [[entstanden]]; die nähere Bestimmung bei Adjectivis einführend, [[πρῶτος]] εἰς εὐψυχίαν Aesch. Pers. 318, vgl. Plat. Charmid. 158 a; ἐς τὸ [[πᾶν]], oft bei Tragg. u. sonst, in jeder Beziehung; z. B. ἐτητύμως Aesch. Ag. 668, [[βίαιος]] Prom. 738; [[σῶμα]] οὐ σπουδαῖον ἐς ὄψιν Soph. O. C. 583; Ai. 863; ἐς τί; ''[[sc.]]'' δυστυχὴς [[ἦσθα]], worin? O. C. 528; ἐς τὰ ἄλλα, z. B. [[μέγας]], Thuc. 1, 1; [[ἄτολμος]] εἰς τὴν μάχην 4, 55; [[ἀνυπέρβλητος]] εἰς πονηρίαν Antiphan. Ath. III, 108 f; [[πόλις]] μεγίστη καὶ εὐδοκιμωτάτη εἰς σοφίαν καὶ ἰσχύν Plat. Apol. 29 d; τοιοῦτος εἰς φρόνησιν Conv. 219 d; ἀγαθὸς εἰς πόλεμον Xen. An. 1, 9, 14; Cyr. 3, 3, 6; εἰς χρήματα [[ἀναιδής]] Dem. 22, 75; vgl. Xen. Cyr. 8, 8, 6; – τὸ μὲν γὰρ εἰς ἔμ' οὐ κακῶς ἔχει Eur. I. T. 691, was mich anbetrifft, ich befinde mich nicht schlecht; vgl. εἰς τὸν ἑαυτῶν βίον ἀσφαλῶς ἔχειν Dem. 10, 45; – bei Verbis; τό γ' εἰς ἑαυτὸν [[πᾶν]] ἐλευθεροῖ [[στόμα]] Soph. O. R. 706; εἰς ὅσον ἐγὼ [[σθένω]], wie weit, Phil. 1389; εἰς πλεῖστον πενθεῖν O. C. 743; ἐς τὰ [[μάλιστα]], häufig; ἐς [[δαιμόνιον]] [[τέρας]] ἀμφιγνοῶ Ant. 372; εἰς δικαιοσύνην ἐπιδείκνυσθαι Xen. An. 1, 9, 16; εἰς χρήματα δίκην λαμβάνειν u. εἰς τὰ σώματα τιμωρίας ποιεῖσθαι, an Geld u. am Leben strafen, Dem. 22, 55; vgl. Plat. Legg. IX, 865 c VI, 774 b. Bes. bei anklagen, loben, tadeln u. ä.; ἐς φιλίαν μέμφεσθαι Xen. An. 2, 6, 30; εἰς τὰ πολεμικὰ καταφρονεῖσθαι Hell. 7, 4, 30; διαβάλλειν εἴς τι Thuc. 8, 88; σκώπτειν εἰς τὰ ῥάκια, εἰς μαλακίαν, Ar. Pax 740 Dem. 18, 245; εἴς τε μαλακίαν καὶ εἰς τὴν ἀβουλίαν ἀπελύσαντο, sie rechtfertigten sich gegen den Vorwurf der Weichlichkeit, Thuc. 5, 75; ἐνεκάλουν εἰς τὴν ἐπιτροπήν, über die Vormundschaft, Dem. 38, 3; so Folgde, wie ὀνειδίζειν τινὶ ἐς ἀσέλγειαν Pol. 5, 11, 2; [[κατά]] τινος εἰπεῖν εἰς ἀχαριστίαν 17, 6, 7; σκώπτειν εἴς τινα Plut. Symp. 2, 9; ἐκωμῳδοῦντο εἰς βλασφήμους Harpocr. p. 9. Auch [[πρῆγμα]] γενόμενον εἴς τινα, ein Vorfall, der sich mit Einem zugetragen, Her. 1, 114. – Absolut, εἰς δὲ τὴν τοῦ καρποῦ κομιδήν, was das anbetrifft, Xen. Cyr. 5, 4, 25; ἐς τὰ ἄλλα, in anderer Hinsicht, Thuc. 1, 1. – Auch bei Substantivis; [[δέος]] εἰς Συρακοσίους Thuc. 6, 85; τιμὴ εἰς [[γῆρας]] Plat. Legg. IX, 879 c; [[δόξα]] εἰς ἀνδρειότητα Xen. An. 6, 3, 14; ὁ εἰς ταῦτα [[ἔλεος]] Dem. 25, 84; ἀγὼν εἰς τὸν Δία = Ὀλύμπια, Thom. Mag. vit. Pind.; ἡ ἐς γῆν καὶ θάλατταν [[ἀρχή]] Thuc. 8, 46. – Oft wird diese Vrbdg eine bloße Umschreibung; τὰ εἰς τὴν τέχνην Plat. Rep. IV, 421 d; οἱ λόγοι οἱ εἰς τὰ δικαστήρια Euthyd. 304 d. – Man merke noch εἰς τὸν ἀριθμὸν ἐφάνη τρισχίλια, für die Zählung oder nach der Zählung, Her. 7, 97; vgl. Thuc. 2, 7 εἰς τὸν πάντα ἀριθμόν u. εἰς λόγον, in Rücksicht auf, – 9) Hieraus entwickelt sich die Bdtg [[gemäß]], [[nach]]; Aesch. Ag. 68 ist εἰς το πεπρωμένον τελεῖται das Vollenden nach dem Schicksal, rin Aufgehen in das Beschlossene; εἰς νόμον ἑαυτῷ ταξάμενος Plat. Legg. V, 733 d; ἐς δύναμιν, nach Kräften, Rep. IX, 590 d; Xen. An. 2, 3, 23 u. oft; ἐς τὸ δυνατόν Cyr. 2, 1, 22, soweit es möglich ist; λέγειν εἰς ὑπερβολὴν δυνατοῦ Aesch. 1, 180; ἐς [[ἀργύριον]] λογισθέν, auf Geld berechnet, 6, 1, 33; εἰς τὸν αὐτὸν λόγον Plat. Rep. I, 353 d; εἰς ἓν [[μέλος]], nach [[einer]] Weise, Theocr. 18, 7; oft bei Lucian., ἐς τὸν πωλικόν, εἰς ὄρνιθος τρόπον, Zeux. 4 Halc. 1. Manche Wendungen der Art werden rein adverbial gebraucht, wie ἐς το ἀκριβὲς εἰπεῖν, genau, Thuc. 6, 82; ἐς ἀκρίβειαν Plat. Legg. VII, 809 e; ἐς [[δέον]] u. εἰς τὸ [[δέον]], Soph. Ant. 386 Her. 2, 173; ἐς καλόν (Suid. εὐκαίρως), Xen. An. 4, 7, 3; Plat. Conv. 174 e u. sonst; ἐς [[κάλλος]] ζῆν Xen. Cyr. 8, 1, 33; ἐς καλόν Plat. Theag. 122 a; εἰς ἀφθονίαν παρέχειν, = ἀφθόνως, Xen. An. 7, 1, 33.
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